ग़ज़ल
असल हिन्दुस्तान तो गांव में रहता है
शहर तो कब का इण्डिया बन गया है
शैतान ही शैतान सरदार किसे चुने
लम्हा-लम्हा पहेलियां बन गया है
चौंक जाता है ज़रा सा आहट पर वो
कांच का जो आशिया बन गया है
कोई कैसे जिए भी या इलाही
ये माहौल भी माफिया बन गया है
बड़ा नाज़ है मेरे ज़माने को “नूरी”
रुखा- रुखा सा वादियां बन गया है
नूरफातिमा खातून “नूरी”
२९/३/२०२०