ग़ज़ल
बड़ी अजीब है ज़माने की फितरते
दिल में दफन हो जाएं सारी हसरतें
सेहतमंदो का तो बस राज़ है यही
न छोड़ें कभी सुबह-शाम की कसरतें
जिन्दगी की राह में कदम लड़खड़ाते
गर सम्भालता है उसे तो बस मुहब्बते
किसी को नाचीज़ ना समझें साहब
जाने कब पड़ जाए उनकी जरूरतें
हो जाये सुकून उसी दिन जहां में “नूरी”
जब खत्म हो जाये दिलों की नफरतें
नूरफातिमा खातून “नूरी”
२८/३/२०२०