[[[ ग़ज़ल ]]]
तेरी क्यूँ नींद में गुम है जवानी
वजन — १२२२/१२२२/१२२
कथा भारत की है बर्षों पुरानी !
नयी पीढ़ी से अब ये है बतानी !!
हमारे बच्चे ये क्या सीखते हैं,,
देखो पढ़ते हैं ये कैसी कहानी !!
निजी संस्कृति गंवाते हैं ये नादां,,
सही बातें सभी को है सुनानी !!
लगे संस्कार अब बंधन-से उन्हें,,
शंका सारी हमें तो है भगानी !!
कहीं पीछे न रह जाये ये भारत,,
कहानी है नयी हमको बनानी !!
जगो नादाँ कहाँ खोये जवानो,,
तेरी क्यूँ नींद में गुम है जवानी !!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
17. 01. 2019