ग़ज़ल
नहीं मिट रही ये मेरी तिश्नगी है
जो मुद्दत से मेरे जिगर में बसी है
समझते नहीं मेरे ज़ज़्बात को जब
ये किस क़िस्म की दोस्ती आपकी है
बहुत ख़ुशनुमा है बहारों का मौसम
नदी का किनारा खिली चाँदनी है
लुभाती है दिल को ये झरनों की कल कल
ये बादे सबा में घुली ताज़गी है
ये दिल था दीवाना हुआ शायराना
तुम्हें देख कर ही हुई शायरी है
तसव्वुर में तुमको बसा कर ही जानां
कि महफ़िल में हमनें ग़ज़ल ये पढी है
नहीं रह सकूँ दूर तुझसे मैं “प्रीतम”
कसम से मेरी जान तू ज़िन्दगी है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)
9559926244