ग़ज़ल
हाले दिल अपना अगर आप ग़ज़ल में कहते
कैसा था दर्दे सफ़र आप ग़ज़ल में कहते
कैसे घायल हुआ दिल आपका इस महफ़िल में
चल गया तीरे नज़र आप ग़ज़ल में कहते
एक पत्थर जो लगा धोके का आकर साहेब
क्या हुआ दिल पे असर आप ग़ज़ल में कहते
रात मुफ़लिस की अंधेरों में है कैसे गुज़री
और हुई कैसे सहर आप ग़ज़ल में कहते
दिल थे पत्थर के जहाँ लोग थे पत्थर के वो
बे वफ़ा का था नगर आप ग़ज़ल में कहते
आपके ग़ज़लों की हम शान बढ़ाते हमदम
हमको गर जाने जिगर आप ग़ज़ल में कहते
ज़ख़्म खाए हैं जो उल्फ़त में उन्हें ऐ ‘प्रीतम”
प्यार का मीठा समर आप ग़ज़ल में कहते
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)