ग़ज़ल
——–ग़ज़ल——
मेरी शायरी को पढ़ा क्या करोगे
ग़ज़ल जो सुनाऊँ सुना क्या करोगे
सितम करने वाले तुझे जानता हूँ
कभी बद्दुआ के सिवा क्या करोगे
अँधेरों में जीते हैं जो उनकी खातिर
दिए की तरह से जला क्या करोगे
ज़माने ने अब तक किए ज़ुल्म हम पर
सिवा ग़म के तुम भी अता क्या करोगे
न कुछ होगा हासिल बताने से तुमको
मेरे दिल की सुनकर सदा क्या करोगे
तुम्हें दिल तो दे दूँ मगर सोचता हूँ
फ़रेबी हो तुम भी वफ़ा क्या करोगे
मुझे छोड़ दोगे ऐ “प्रीतम किसी दिन
कि हक़ प्यार का तुम अदा क्या करोगे
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)