ग़ज़ल
——-ग़ज़ल——
दिल को आता है क्यों क़रार नहीं
और क्यों ख़ुद पे इख़्तियार नहीं
यह तो नादाँ है कितना समझाऊँ
बे-वफ़ा है वो तुझसे प्यार नहीं
अब न छाएँगे प्यार के बादल
कोई बारिश कोई फुहार नहीं
दर्दे दिल हमको सहना है तन्हा
कोई अपना है ग़मगुसार नहीं
प्यार के गुल खिलें मेरे दिल में
मेरी क़िस्मत में वो बहार नहीं
ज़िस्म से रूह कब निकल जाए
ज़िन्दगी का भी ऐतबार नहीं
ज़ख़्म किसको दिखाऊँ मैं “प्रीतम”
कोई सुनता मेरी पुकार नहीं
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)