ग़ज़ल
——– ग़ज़ल ——–
पता नहीं था ये दिन ज़िन्दगी दिखाएगी
हमारे अपनों से ही दूर लेके जाएगी
सियासी दाँव भी चलना मुझे नहीं आता
ये ज़िन्दगी लगे ख़ुद को बचा न पाएगी
फ़तेह पाके जो इतरा रहा है तू खुद पर
ये लाठी वक़्त की इक दिन तुझे झुकाएगी
तू रख सभी के लिए दिल में रहम वरना ये
अना तुम्हारी तुम्हें ख़ाक़ में मिलाएगी
तू रख सभी के लिए दिल में रहम वरना ये
अना तुम्हारी तुम्हें ख़ाक़ में मिलाएगी
किये जा दिल से तू माँ बाप की यहाँ ख़िदमत
दुआ उन्हीं की बला से तुझे बचाएगी
जहां में आया है तो नेकी कमा ले बन्दे
ये नेक़ी क़ब्र में तेरे ही काम आएगी
न ज़ुल्म करना कभी भी किसी पे ऐ “प्रीतम”
नहीं तो आतिशे- दोजख़ तुझे जलाएगी
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)