ग़ज़ल
———ग़ज़ल——-
दर्द से होके तू बेख़बर यूँ न जा
मान जा मेरी जाने जिगर यूँ न जा
आख़िरी हो न ये शाम मेरी कहीं
एक पल के लिए तू ठहर यूँ न जा
मत लगा ठोकरें बन के पत्थर सनम
वरना पछताओगे उम्र भर यूँ न जा
काट पाओगे तन्हा नहीं ये सफ़र
जीस्त की है कटीली डगर यूँ न जा
जब कड़ी धूप ग़म की सताने लगे
मैं बनूँगा तुम्हारा शजर यूँ न जा
वस्ल का जाम दे दे कहीं ये न हो
मैं तड़पता रहूँ रात भर यूँ न जा
दम निकल जाए गा इश्क़ में अब तेरे
मेरे “प्रीतम” मुझे छोड़ कर यूँ न जा
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)