ग़ज़ल
——-ग़ज़ल—–
माँ तेरे प्यार की ज़रूरत है
तेरी ममता ही मेरी नेमत है
बस तू ही तो जहां में है सच्ची
बाक़ी रिश्तों में भी सियासत है
क़र्ज़ कैसे तेरा चुकाऊँगा
साँस मेरी तेरी अमानत है
मुझपे है इख़्तियार बस तेरा
ज़िन्दगी ये तेरी ब-दौलत है
लाख ग़लती मुआफ़ कर देती
ऐ मेरी माँ तेरी सख़ावत है
राहे हक़ पर हमेंशा ही चलना
देती हमको यही नसीहत है
आज “प्रीतम” के वास्ते ऐ माँ
तू ही दुनिया है तू ही जन्नत है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)