ग़ज़ल
—-ग़ज़ल—-
देश के जो हैं परस्तार बदल कर देखें
इस इलेक्शन में वो सरकार बदल कर देखें
ओढ़ रक्खी जो रिदा हमनें गु़लामों वाली
अब तो हम अपना ये क़िरदार बदल कर देखें
डूब ही जाती है क़श्ती जो किनारे आकर
आओ इस बार ये पतवार बदल कर देखें
भाई भाई में वही प्यार जगे बचपन के
आज आँगन की वो दीवार बदल कर देखें
इस शराफ़त से मिली हमको फ़क़त रुसवाई
है तक़ाज़ा कि ये अवतार बदल कर देखें
प्यार तो प्यार के बदले में मिला करता है
शर्त है आप भी गुफ्तार बदल कर देखें
काट ही दोगे ऐ “प्रीतम” ये शजर नफ़रत के
आप बस सोच की तलवार बदल कर देखें
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)