ग़ज़ल
——ग़ज़ल—–
इश्क़ में आज मुझे हद से गुज़र जाने दे
हुस्न की दरिया में प्यासे को उतर जाने दे
एक मुद्त से मेरी ज़िन्दगी है सहरा सी
आज छू ले तू इसे और सँवर जाने दे
सांस से सांस का हो जाए मिलन ऐ हमदम
लम्स-ए-इश्क़ से ये हुस्न सिहर जाने दे
वस्ल की रात है ये वक़्त भी रुक जाएगा
अपने पहलू में मुझे बस तू ठहर जाने दे
शाम कितनी है सुहानी वो मगर कहते हैं
देर होती है सनम रोक न घर जाने दे
बन के तू बादे सबा मेरे चमन में आजा
दिल की मुरझाई कली आज निखर जाने दे
कितनी मुश्क़िल से मिले हैं ये मसर्रत के दिन
खाली दामन है इसे खुशियों से भर जाने दे
महफ़िले-गैर में दिल लगता नहीं है “प्रीतम”
है जिधर यार मेरा मुझको उधर जाने दे
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)