ग़ज़ल
“लिखूँ ए दिल बता क्या मैं”
लिखूँ ए दिल बता क्या मैं बड़ा दिलकश फ़साना था।
नहीं मैं भूलता उसको वही मेरा खज़ाना था।
बहुत खुशियाँ मिलीं मुझको सनम मासूम सा पाकर
मुहब्बत से भरा जीवन बना सावन सुहाना था।
छिपा था चाँद घूँघट में हटाया रेशमी पर्दा
बहारों के महकते ज़िस्म से यौवन चुराना था।
हुआ दीदार जब उसका किया का़तिल निगाहों ने
नवाज़ा हुस्न को मैंने रिवाज़ों को निभाना था।
तमन्ना मुख़्तसर को अब भरा आगोश में मैंने
अदब से चूम पलकों को मुझे उसको रिझाना था।
चढ़ी दीवानगी ऐसी सनम पे दिल लुटा बैठा
नहीं काबू रहा खुद पर उसे अपना बनाना था।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर