ग़ज़ल 14
कसम झूठी जो खाओगे, निभाना भूल जाओगे
रुलाना मत, वगरना मुस्कुराना भूल जाओगे
कोई अपना कभी तुझको चुभायेगा अगर नश्तर
नमक दुश्मन के ज़ख़्मों पर लगाना भूल जाओगे
हक़ीक़त आईना सारी दिखा देगा तुझे जिस दिन
गुनाहों को ज़माने छुपाना भूल जाओगे
सुनाएँगे कहानी जब कभी अपनी तबाही की
मेरा दावा है तुम अपनी सुनाना भूल जाओगे
बुरी मय की है लत जिससे उजड़ जाते हैं घर के घर
हक़ीक़त जान कर पीना पिलाना भूल जाओगे
विदा होकर जो बेटी जाएगी अपने पिया के घर
कसम से तब बहू को तुम सताना भूल जाओगे
जो सरहद की हिफ़ाज़त में लगे हैं, उनकी सोचोगे
तो होली या दिवाली तुम मनाना भूल जाओगे
‘शिखा’ के तज़्रबे पर तुम तवज्जो दो तो मुमकिन है
किताबों की नसीहत को सिखाना भूल जाओगे