ग़ज़ल 13
उल्फ़त की, दोस्ती की, न शफ़क़त की बात है
देखा यहां वहां तो अदावत की बात है
गुजरे न रहगुज़र से वफाओं की वो कभी
समझाऊं किस तरह ये मुहब्बत की बात है
दरबार में ख़ुदा के है सज़्दे में सर झुका
अब किस को क्या मिलेगा ये क़िस्मत की बात है
दौलत वो मांगे रब से, हमें चाहिए सुकूं
शायद ये अपनी अपनी ज़रूरत की बात है
धनवान था वो फिर भी ख़ज़ाना चुरा लिया
मेरी समझ से हां यही नीयत की बात है
हमने तो दिल का हाल न ज़ाहिर किया कभी
फिर भी समझ गए वो ज़िहानत की बात है
जज़्बात की जहां में ‘शिखा’ क़द्र है कहां
होती अगर है बात तो दौलत की बात है