ग़ज़ल
———ग़ज़ल——-
कुछ पास हो न हो मेरे लेकिन वफ़ा तो है
इन्सानियत का फ़र्ज़ है क्या ये पता तो है
कुछ और पा सका नहीं — उसके जो प्यार में
पर दाग़ बे वफ़ाई का — हमको मिला तो है
नज़दीक़ियाँ नहीं हैं अगर – इश्क़ में तो क्या
अच्छा है मेरे पास कि –ये फ़ासला तो है
पर सारे काट डाले — हैं सैंयाद ने मगर
पंक्षी में अब भी उड़ने का –इक हौसला तो है
दुनिया के —-मयक़दों से –मैं क्या वास्ता रखूँ
मुझको रसूले पाक़ का ——छाया नशा तो है
प्रीतम ये आज़ उसकी सहेली बताती थी
ज़ालिम कोअब भी मुझसे तनिक वास्ता तो है
. प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)