ग़ज़ल
—–ग़ज़ल—-
उठा के हाथ ख़ुदा ——से करे दुआ कोई
वतन को मेरे लगे —-अब न बद्दुआ कोई
बहुत ही टूटा है ये —-क़हरे आसमानी से
न आए अब कभी केरल सी आपदा कोई
लुटी है बेटियों की कितनी अस्मतें लेकिन
मरे न बेटी न हो —–बाप ग़मज़दा कोई
लुटेरे लाख हैं ——जो लूटते हैं भारत को
कभी तो आएगा ही -बन के रहनुमा कोई
वतन के दुश्मनों अब -होशियार हो जाओ
तुम्हे मिटाने को —-आए गा सरफिरा कोई
डरा रहे हैं वो बारूद—— को बिछा करके
नहीं है जिनका —-भी इंसां से वास्ता कोई
कमी नहीं है ज़ियालों —की देश में “प्रीतम”
शुरू करेगा अमन का —ये सिलसिला कोई
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)