ग़ज़ल 11
वो हैं साहिल पे मगर मौज से डर जाते हैं
हम तो तूफ़ान के अंदर भी उतर जाते हैं
जान दे देते हैं कुछ लोग ज़ुबाँ की ख़ातिर
जिनकी आदत है मुकरने की मुकर जाते हैं
कोई इस राज को अबतक न समझ पाया है
जो चले जाते हैं दुनिया से किधर जाते हैं
रब ने ख़ुशबू के ख़ज़ाने से नवाज़ा लेकिन
एक दिन फूल भी मुरझा के बिखर जाते हैं
सबको ही वक़्त का पाबंद रखा है रब ने
शाम होते ही परिंदे भी तो घर जाते हैं
अपने जज़्बात मैं कागज़ पे उतारूं कैसे
सारे अल्फ़ाज़ यहां आ के बिखर जाते हैं
जो परेशान ‘शिखा’ करते हैं सबको अक्सर
ख़ुद पे आती है मुसीबत तो किधर जाते हैं