ग़ज़ल 10
साँस और मौत के हैं खाने दो
तीर है एक और निशाने दो
आपका दिल या आपकी आँखें
मेरे दुनिया में हैं ठिकाने दो
इक मुहब्बत है इक इबादत है
उम्र-ए-फ़ानी के हैं ख़ज़ाने दो
तेरा आना या रुख़सती तेरी
जीने मरने के हैं बहाने दो
एक माँ का है एक वालिद का
क़र्ज़ जीवन में हैं चुकाने दो
है नज़रिया अलग अलग उनका
बाप बेटे के हैं ज़माने दो
ऐ ‘शिखा’ माँ का और बीवी का
फ़र्ज़ मुश्किल हैं ये निभाने दो