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11 Jan 2019 · 1 min read

ग़ज़ल – हैं बहुत

हम तो खुशियों के दीवाने हैं बहुत।
गम भुलाने के बहाने हैं बहुत।

बैठिए नज़दीक किसी बुज़ुर्ग के
खुशियाँ पाने के ठिकाने हैं बहुत।

बिखरा है क्या रूप देखो हर तरफ
फैले कुदरत के खजाने हैं बहुत।

चहचहाना पंछियों का तुम सुनो
गा रहे मीठे तराने हैं बहुत।

जब तलक जीना है हँस कर ही जियो
दर्द के यूँ तो फ़साने हैं बहुत।

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

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