ग़ज़ल सगीर
आपकी चाहत, मोहब्बत,उंसियत का है असर।
आपने हमको दिया उस अहमियत का है असर।
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जल उठी शमआ मोहब्बत की तो दिल रोशन हुआ। तब्दीलियां मुझ में, तेरी ही शख्सियत का है असर।
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हर तरफ नफरत की अब बाजार देखो गर्म है।
सिर्फ गंदे लोगों की यह ज़हनियत का है असर।
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अब नहीं महफूज सड़कों पर बहन और बेटियां।
किस कदर इंसान में हैवानियत का है असर।
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ऐशो इशरत के लिए,होकर बुजुर्गों से हम दूर।
बे अदब तिफ्ल ओ जवां है,तरबियत का है असर।
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आजकल मगरूर जो अपनी अना में चूर है।
यह नई दौलत के मालिक, मिल्कियत का है असर।
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दिल की इस बंजर ज़मीं पर प्यार का पौधा उगा।
कुछ नहीं यह सिर्फ तेरी खासियत का है असर।
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यह हमारा मुल्क जो गुलशन बना हर फूल से।
सगीर इस पर जान कुर्बां,शहरियत का है असर।