@ग़ज़ल:- शिलान्यास हो गया…
आता चुनाव देख शिलान्यास हो गया।
गंजे के सर पे केश का विन्यास हो गया।।
उड़ते थे हम गगन में घरौंदों से मुक्त थे।
पिंजरे में कैद करके पुनर्वास हो गया।।
चक्कर लगा लगा के उसे फांस ही लिया।
अपना सफल ये देखिए प्रयास हो गया।।
सर धुन लिया है अब हांथों को मल रहे।
झूठों पे जाने क्यों हमें विश्वास हो गया।।
आवारा बादलों की तरह घूमते रहे।
हम आप मिल गये तो चतुर्मास हो गया।।
हमको डराया मत करो मरने का डर नहीं।
पल-पल मरे हैं अब हमें अभ्यास हो गया।।
आज्ञा पिता की राम का वनवास हो गया।
मां बाप का अब बोलना बकवास हो गया।।
टूटा धनुस ये कैसे परसराम पूछते?
हमको पता नहीं ये अनायास हो गया।।
महफ़िल सजाई आपने ख़ुशियाॅं बिखेर दीं।
चारों दिशा में आज तो उल्लास हो गया।।
लाला ललालला ललालाल लालला।
भाषा के तज्ञ समझे अनुप्रास हो गया।।
शेरों को देख अब गली में कुत्ते भौंकते।
इक दौर-ए-‘कल्प’ था अमां इतिहास हो गया।
✍अरविंद राजपूत ‘कल्प’