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30 Apr 2024 · 1 min read

ग़ज़ल – वो पल्लू गिराकर चले थे कभी,

दिन दिनांक : मंगलवार ३० अप्रैल २०२४
विधा : ग़ज़ल
बह्र: बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम मक़्सूर
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
मात्रा भार : १२२ / १२२ / १२२ / १२

वो पल्लू गिराकर चले थे कभी,
झुकाकर निगाहें मिले थे कभी !

जो देखा था उसने मिला कर नज़र
लबों पर हँसीं गुल खिले थे कभी !

बहुत ही था नाजुक वो पल हसीं
बिना कुछ कहे लब हिले थे कभी !

हमारी जुदाई का आलम ये था,
उन आंखो से आंसू ढले थे कभी !

हुई जो मुलाक़ात सब मिट गए
‘धरम’ के लिए जो गिले थे कभी !!
***

डी के निवातिया

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