ग़ज़ल – वफ़ादारी नही रही !
रिश्तों में पहले जैसी रवादारी नहीं रही !
अपने तो हैं बहुत पर वफ़ादारी नही रही !
हमदर्दों से दिल इस क़दर हुआ रुसवा ,
कि अपने वजूद पे भी दावेदारी नही रही !
रुख़ हवा का देख के तुम भी बदल गये,
मुझमें भी तुझे पाने की बेक़रारी नही रही !
हँसना तो ग़म छुपाने का ज़रिया बना रहा,
अश्को को मातम की ज़िम्मेवारी नही रही !
नूरैन ऐसा उजड़ा दिल कि बसा नही कभी,
फिर से कभी इश्क़ में हिस्सेदारी नही रही !
– नूरैन अन्सारी