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9 Dec 2021 · 1 min read

ग़ज़ल – वफ़ादारी नही रही !

रिश्तों में पहले जैसी रवादारी नहीं रही !
अपने तो हैं बहुत पर वफ़ादारी नही रही !

हमदर्दों से दिल इस क़दर हुआ रुसवा ,
कि अपने वजूद पे भी दावेदारी नही रही !

रुख़ हवा का देख के तुम भी बदल गये,
मुझमें भी तुझे पाने की बेक़रारी नही रही !

हँसना तो ग़म छुपाने का ज़रिया बना रहा,
अश्को को मातम की ज़िम्मेवारी नही रही !

नूरैन ऐसा उजड़ा दिल कि बसा नही कभी,
फिर से कभी इश्क़ में हिस्सेदारी नही रही !
– नूरैन अन्सारी

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