ग़ज़ल : रोज़ी रोटी जैसी ये बकवास होगी बाद में
रोज़ी रोटी जैसी ये बकवास होगी बाद में
मैं अभी तो मौन में हूँ इष्ट जी की याद में
इसलिए अफ़सर ने मिलने से मना है कर दिया
गड्डियाँ कम पड़ गईं मुफ़लिस तेरी फ़रियाद में
इस तरह बेहूदगी की जा रही है आजकल
छोकरी नचवा रहे हैं युगपुरुष की याद में
चापलूसों की नई इक नस्ल है बाज़ार में
नौ-बहारें देखते जो टोपियों की पाद में
किस क़दर ये नौजवानी खा गई नेतागिरी
डाल के मट्ठा मही इस नस्ल की बुनियाद में
इसमें मारे जाएँगे सब हाशिए के लोग ही
जंगली कानून जो लागू है पूँजीवाद में
कौन सी ऐसी जगह है औरतें महफ़ूज़ हों
हाथरस हो या अलीगढ़ या मुरादाबाद में
आज गोंडा की ज़मीं पे आया हूँ पहली दफ़ा
ये ग़ज़ल लिक्खी है बाबा गोंडवी की याद में