ग़ज़ल: मैं वहीं से इक फ़साना हो गया !
#मैं_वहीं_से_इक_फ़साना_हो_गया !
काफ़ – आना
रदीफ़ – हो गया
वज्न – २१२२_२१२२_२१२
…ये ज़माना अब सयाना हो गया !
झूठ दिल का आशियाना हो गया !!
..रब मिला था इक दफ़ा ये याद है,,
दिल मिले तो इक ज़माना हो गया !
….चोट खाई है मिरे दिल ने जहाँ,,
..मैं वहीं से इक फ़साना हो गया !
इस जहां ने दर्द कुछ ऐसा दिया,,
….दर्द से रिश्ता पुराना हो गया !
मैं ज़ुबां पर यूँ चढ़ा कुछ इस तरह,,
…मैं ढला तो इक तराना हो गया !
….भावनाएँ मर चुकी हैं साथियो,,
क़त्ल करना बस बहाना हो गया !
…मैं कहाँ ढूँढूँ जहां में नेक दिल,,
..नेकी से खा़ली ज़माना हो गया !
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दिनेश एल० “जैहिंद”
09. 03. 2020