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2 Nov 2018 · 1 min read

माँ

मेरी मां हैं जो हमेशा मुझमें जिया करतीं हैं
वो शज़र बनके मुझे छावँ दिया करती है

माँ की सूई तो नुकीली भी नही होती कभी
जाने कैसे वो ये रिश्तों को सिया करती हैं

हम पे खुशियां सब लुटाकर जी लेती है हर घड़ी
मस्त रहतीं और सारे ग़म पिया करती है

आंच आने भी न देती ज़ख्म की क्या बात है
ढाल बनकर वो बलाएं भी लिया करती है

मां की ममता का लगें अहसास गहरा है मुझे
यूं लगें हर पल इशारा वो किया करती है

त्याग की मूरत है माँ जग नें भी ये माना यहां
श्रेष्ठ होने का न वो जग में रिया (दिखावा) करती है

ख़ुद से भी ज्यादा कँवल रखतीं हैं घर का ध्यान माँ
रौशनी घर में करें जैसे बया(एक पक्षी)करती है

बबिता अग्रवाल कँवल
सिल्लीगुड़ी (पश्चिम बंगाल)

17 Likes · 78 Comments · 1570 Views

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