ग़ज़ल :– महँगाई (व्यंग)
!! मंहगाई !! [गजल]
बेबस और बेजान हैं सब अपने घर वार मे !
आंसू ले दस्तक दिये सावन के त्योहार ने !!
अच्छे दिन की होड मे न्योत दिये मेंहमान !
हालत खस्ता कर गई मंहगाई की मार ने !!
लेखा जोखा लगा लगा कर चिन्तन करते भाव !
अंक गणित हमे सिखा गई मंहगाई उपहार मे !!
खा पी कर मोटे हुए जब हल्के थे दाम !
डाइटिंग करना सिखा गई मंहगाई एक वार मे !!
मन की टेंसन दूर हुई हुआ रक्तचाप सामान्य !
धंधा मंदा पड गया मंदी के व्यापार मे !!
गर्दी ट्रेन पे कम हुई सफर हुआ आसान !
कदम फूंक-२ कर रखते सब मंहगे बाजार मे !!
अनुज तिवारी “इन्दवार”