“ग़ज़ल” – बेदाग़ किया था उसने..
इश्क़ के इल्ज़ाम से खुद को बेदाग़ किया था उसने..
सर झुकाया और आंखो से आदाब किया था उसने..
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दूर होकर उनसे मै बदहवासी में था..
गले लगाकर मुझको शादाब किया था उसने…
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मैं बिखरा था कुतुबखाने में कागज की तरह.,
फिर समेट कर मुझको किताब किया था उसने..
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और तराशा अपनी मोहब्बत में उसने ऐसे मुझे..
जैसे किसी हीरे को नायाब किया था उसने..
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मेरी ख्वाहिश थी पास बिठाकर लिखू कोई ग़ज़ल उसपर.,
लेकिन मेरे सारे अरमानों को बस ख़्वाब किया था उसने..
(ज़ैद_बलियावी)