ग़ज़ल – बड़े लोगों की आदत है!
सभी के ऐब गिनवाना बड़े लोगों की आदत है
करें क्यूँ फिक्र दुनिया की जो अपनी साफ़ नीयत है
हमें ही कम मिला सब कुछ यही सबको शिकायत है
सभी को उससे ज़्यादा चाहिए जितनी ज़रूरत है
नतीजा है उजालों की तरफ़दारी न करने का
चिराग़ों के शहर पे अब अँधेरों की हुकूमत है
सलीक़ा ज़िन्दगी जीने का ऐसे भूल बैठे हम
तुम्हें हम से शिकायत है हमें तुमसे शिकायत है
कोई पैग़ाम घर की आग का आँधी को मत देना
लगी को और भड़काना यही आँधी की फ़ितरत है
कभी आड़ी कभी तिरछी बड़ी टेढ़ी है ये दुनिया
जो सीधे लोग हैं उनके लिए जीना मुसीबत है
ये कारोबार नफ़रत का वहाँ चल ही नहीं सकता
जहाँ पर धर्म है इन्सानियत मज़हब मुहब्बत है
फ़सल ख़्वाबों की अच्छी लग रही है आपको यारो
मगर ये ध्यान में रखना हक़ीक़त फिर हक़ीक़त है!