ग़ज़ल : पेट में दाना नहीं
पेट में दाना नहीं उपवास लेकर क्या करें
मर चुके प्यासे परिंदे प्यास लेकर क्या करें
सार्वभौमिक सत्य है ये मृत्यु का आना है तय
मछलियाँ बगुलों से फिर विश्वास लेकर क्या करें
ज़िंदगी खा जाएगी सरकार की माफ़िक हमें
ज़हर की गोली या फिर सल्फास लेकर क्या करें
पेट भरने के लिए अब दूर हैं बच्चों से हम
और फिर इससे अलग संन्यास लेकर क्या करें
सब के सब हैं जा चुके तुम भी चले ही जाओगे
फिर भी हम तुमसे कोई अब आस लेकर क्या करें
हम कि जो भूगोल से बाहर रहे सदियों तलक
अब तुम्हारा गौरवी इतिहास लेकर क्या करें
अब तलक उपहास का हम केंद्र ही बनकर रहे
फिर तनिक मिल भी गया तो हास लेकर क्या करें