ग़ज़ल/नज़्म – प्यार के ख्वाबों को दिल में सजा लूँ तो क्या हो
प्यार के ख्वाबों को दिल में सजा लूँ, तो क्या हो,
इश्क़ की झील में गोते लगा लूँ, तो क्या हो।
भीनी सी मदहोशी में जैसे बीतती जाए सारी रात,
दूर बैठे यार को एहसासों में बुला लूँ, तो क्या हो।
भोर की अंगड़ाई में जब आए खुशबू की बरसात,
अपने सीने में बस उसको समा लूँ, तो क्या हो।
भरी दोपहरी में दूर होने लगे जब साए का साथ,
सपनों की सेज को फिर से सजा लूँ, तो क्या हो।
अड़चनें खूब लगाना चाहे ज़माना जब हमारी राहों में ,
अपने दिल से रंजोगम को भगा लूँ, तो क्या हो।
मृगतृष्णा सी उसकी चाहत की जब दिल में लगने लगे ‘अनिल’,
उसकी प्रेम कस्तूरी को हृदय में बसा लूँ, तो क्या हो।
(गोता = डुबकी)
(सेज = सुन्दर और कोमल बिछौना)
(कस्तूरी = नर हिरण की नाभि के पास पाया जाने वाला सुगन्धित पदार्थ)
©✍️ स्वरचित
अनिल कुमार ‘अनिल’
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