ग़ज़ल/नज़्म – उसकी तो बस आदत थी मुस्कुरा कर नज़र झुकाने की
उसकी तो बस आदत थी मुस्कुरा के नज़र झुकाने की,
हमको भी आदत लग गई इज़हार-ए-प्यार समझ जाने की।
उसका अक्स आकर बैठने लगा आँखों के दरवाजों पे,
हमको लत वो लगा ही गया नींद की गोली खाने की ।
इश्क़ ख़ुमारी का आलम है कि खाली नहीं होता मद प्याला,
मुड़-मुड़ कर राह वो बताती गई आँखों के मयखाने की।
मदमस्त साकी करने लगी अपनी अदाओं से पिला-पिला,
दिल में हिलोरें लहराने लगी प्यार के जाम टकराने की।
दिल ड़ोल रहा है मन झूम रहा है उसकी यादों में ‘अनिल’,
काश वो पास आकर सिखा देती कला चश्मे-मयगूँ में खो जाने की।
(मद = शराब,मद्य)
(खुमारी = नशा)
(हिलोर = तरंग, लहर)
(चश्मे-मयगूँ = मद-भरी आँख)
©✍️ स्वरचित
अनिल कुमार ‘अनिल’
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