ग़ज़ल- ज़रा मुस्कुराइये
ग़ज़ल- ज़रा मुस्कुराइये
मायूस होके इतने न आंसू बहाइये
दुनिया के हर सितम पे ज़रा मुस्कुराइये।।
भारी तो है ज़रूर ज़माने के ग़म बोझ।
आगे मगर किसी के ध सर को झुकाइये।।
रहमत का रव कीजिए थोड़ा सा इंतजार।
दीपक उम्मींद का न अभी से बुझाइये।।
करनी है आपको भी बहुत तय रहे हयात।
राहों में दूसरों की न कांटे बिछाइये।।
दुनिया के रंजो गम से बहुत कर चुके वफ़ा।
‘राना’ न अपने आप पे अब ज़ुल्म ढाइये।।
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©ग़ज़लगो-राजीव नामदेव “राना लिधौरी”,टीकमगढ़
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
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