ग़ज़ल — ज़माना ढूँढते हैं !!
ग़ज़ल — ज़माना ढूँढते हैं !!
प्यास लगे तो पैमाना ढूँढते हैं !
भरी महफिल में मयखाना ढूँढते हैं !!
जाम आशिकी का पीने वाले !
महबूब की बाहों में ठिकाना ढूँढते हैं !!
तीर नज़रों से घायल दिल अब !
मदहोश आँखों में आशियांना ढूँढते हैं !!
कहीँ महफिल यादगार बनी !
कोई ग़म भुलाने का बहाना ढूँढते हैं !!
“अनुज” आज भी “इंदवार” में जाकर !
अपना वो गुजरा ज़माना ढूँढते हैं !!
अनुज “इंदवार”