ग़ज़ल- इशारे देखो
**ग़ज़ल- -इशारा देखों-*
हवायें कर रही है तुम भी इशारा देखो।
किस तरह बर्फ़ से उठती है शरारा देखो।।
हो गया छेद गर कश्ती में डूब जायेगी।
तुम अगर चाहते हो बचना तो किनारा देखो।।
इन हादसों से तुम कभी मायूस न होना।
उन के दर पे मिले कितनों को सहारा देखो।।
सब रहते है यहां मिलके धर्म कोई हो।
हसीन दिखता है कितना नज़ारा देखो।।
सजा रख्की है जहां चांद ने महफ़िल अपनी।
वहां पे ‘राना’ है छोटा सा सितारा देखो।।
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© राजीव नामदेव “राना लिधौरी”,टीकमगढ़
संपादक-“आकांक्षा” हिंदी पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ बुंदेली पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
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