ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल माने जो मशविरा वो सम्हल जाएगा ।
ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
माने जो मशविरा वो सम्हल जाएगा ।
वर्ना चिकनी सड़क पे फिसल जाएगा ।
जुल्म मासूम पर हो रहे जिस तरह,
देखकर संगदिल भी पिघल जाएगा ।
बात झूठी करे और धोखा करे,
शख़्स दिल से मेरे वो निकल जाएगा ।
झूठ में ही सही कुछ कहो तो कभी,
दिल हमारा इसी से बहल जाएगा ।
इस चटकती खिली धूप का लुत्फ़ लो,
शाम को आपका शम्स ढल जाएगा ।
जो वतन के लिए भूख सहता अभी
दुश्मनों को वो कच्चा निगल जाएगा ।
एक सा कब रहा वक्त “अवधेश” का,
आ गया जो बुरा वक्त टल जाएगा।
अवधेश कुमार सक्सेना 24062022
शिवपुरी,मध्य प्रदेश