ग़ज़ब हो रहा………….
“आखिरकार….
साहब माफ़ करना,
सोचने की बात हैं कि,
“ग़ज़ब हो रहा था”
या
“सब कुछ ग़ज़ब हुआ था”
साहब…..
इसमें अज़ीब यह नहीं कि,
जिसके नाम की साँसे चल रही थी,
वो धड़कने ही तोड़ रहा था,
अज़ीब तो यह था कि,
आख़िरकार….
सब कुछ ग़ज़ब हो रहा था,
ना कि ग़ज़ब हुआ था,
और साहब…..
सबसे अजीब यह हैं कि,
मेरी भी वज़ह यही हैं।”
-सीरवी प्रकाश पंवार