गहराई
गहराई
सागर सी गहराई होती है मन में
कितनी जिम्मेदारियाँ भरी हैं जीवन में
चाह कर भी खुद को किसी से बयाँ नहीं करते
कुछ जख्म ऐसे है इनके,
जो कभी नहीं भरते
चाहे जितना दुख भरा हो,
फिर भी मुस्कराना पड़ता है
तुम पुरुष हो रो नही सकते,
ऐ जताना पड़ता है
हर किसी की ख़्वाहिश को पूरा करने की,
इनपर जिम्मेदारी है
अपने द्वंद्व को किसी से बांट नहीं सकते,
इस बात की लाचारी है
सुबह निकलते है काम पर कि घर सम्हाल सकें
घिर गए हैं इस कदर व्यस्तता में कि
कुछ समय अपने लिए भी निकाल सकें
नहीं रहता होश खुलकर मुस्कुराने का
पुरुष को हमेशा मजबूत ही रहना है
ए कैसा नियम है जमाने का
सारी दुनिया की अच्छाई-बुराई बस सहते ही जाना है
पर कितनी पीड़ा छिपी है मन में ऐ किसी ने कहाँ जाना है
इक पिता, पति, भाई, मित्र,पुरुष के कुछ रूप हैं
स्त्री यदि गर्मी की छाया तो पुरुष सर्दी की धूप है
निकलता है कमाने इस उद्देश्य से कि
कुछ अपनों के लिए जुटा सके
जो खुशी उसने कभी नहीं पाई,
वो उसके बच्चे व परिवार पा सके।
आसान नहीं होता पुरुष होना,
यह स्वीकार करना होगा
उन्हें भी दर्द होता है
यह मन में भरना होगा
बस इक विनती है कल्पना की
इनको भरपूर सम्मान दो
जैसे नारी है पूजनीय पुराणो में,
वैसे इन्हें भी पूज्य स्थान दो