गले लगाना पड़ता है
कपट दौड़े सरपट, छल जाता है उछल, जग को यह सब भाता है।
भलाई, प्रेम, कृपा, त्याग जैसा भाव, किसी भी मन में न आता है।
भोग-विलास करते इस जग में, प्रेमी को वैरागी हो जाना पड़ता है।
कभी हालात से मजबूर होके, शैतान को भी गले लगाना पड़ता है।
अब इश्क़ की बातों को सुनते ही, ज़माना मखौल उड़ाने लगता है।
किसी को इश्क़ की कद्र नहीं, ये बातों का माहौल बताने लगता है।
इश्क़ के ग़मों का हर किस्सा, बुझे मन से सबको सुनाना पड़ता है।
कभी हालात से मजबूर होके, शैतान को भी गले लगाना पड़ता है।
पहले तो ख़ुद ही दर्द पहुँचाते, बाद में उसपे मरहम लगाते हैं लोग।
इश्क़ की थोड़ी पैरवी करते ही, यूॅं एहसान हर दिन जताते हैं लोग।
ज़माना जालिम है ये जानते हुए, दर्द भी इसी को बताना पड़ता है।
कभी हालात से मजबूर होके, शैतान को भी गले लगाना पड़ता है।
प्यार हुआ तो सब मित्र बिछड़े, ज़माने की भीड़ में कहीं खोते गए।
मित्रों के मन में छिपे भाव न दिखे, हम प्रियसी के करीब होते गए।
माना हर हाथ में कटार, पर मित्र मानते हुए हाथ मिलाना पड़ता है।
कभी हालात से मजबूर होके, शैतान को भी गले लगाना पड़ता है।
सोच अच्छी न हो तो न सही, पर कुछ बातें तो अच्छी किया करो।
हर समय दुःख ही रहता संग, कभी तो खुशी होके भी जीया करो।
यहाॅं हर मुॅंह में अंगार भरा, हमें बातों से ही दिल जलाना पड़ता है।
कभी हालात से मजबूर होके, शैतान को भी गले लगाना पड़ता है।
दोनों के दिल को बुरा लगता है, इसे अच्छी यादों से भरना चाहिए।
समस्याएँ तो रोज़ होती रहेंगी, इन्हें सूझबूझ से हल करना चाहिए।
गलती अपनी हो या प्रेमिका की, प्रेमी को ही उसे मनाना पड़ता है।
कभी हालात से मजबूर होके, शैतान को भी गले लगाना पड़ता है।