गली मुहल्लों से लश्कर निकालने वाले,
गली मोहल्लों से लश्कर निकालने वाले,
डरे हुवे हैं बहुत डर निकालने वाले,
ये सब ख़ज़ानों के चक्कर में आ के बेठे हैं,
मेरी ज़मीनों से पत्थर निकालने वाले,
गले लगाएंगे हमको बड़े ख़ुलूस के साथ,
ये आस्तीनों से खंज़र निकालने वाले,
हमेशा खून ख़राबा पसंद करते हैं,
छतों से अपनी कबूतर निकालने वाले,
मुझे यक़ीन है दुनिया में फिर से आएंगे,
वो जंगलों से ग़ज़नफर निकालने वाले,
ग़ज़नफर=बब्बर शेर
——//अशफ़ाक़ रशीद,,,,,