गलियां मेरे गांव की…
वो टेडी – मेडी
तंगहाल सी,
उथली पुथली और,
कीचड़ से भरी
वही नालियां मुझको याद बहुत आती हैं ।
किसी तरह से
निकल पाते हैं,
जब बरसात के,
दिन आ आते हैं तो,
पौखर में नहाने की यादें ताजा हो जाती हैं ।
जिन गलियों में,
मैं खेला था,
जहां अनगिनत मेरे,
मित्रों का रेला था ।
फ़िर उनसे बिछुड़ने की यादें रुलाती हैं ।
वो नीम का पेड़,
जिसपे कभी मैं खेला था,
ख़ूब थकाया मित्रों ने,
जब हद से ज्यादा पेला था ।
उसे याद करके मेरी आंखें भर आती हैं ।
जब भी कभी – कभी हम,
आपस में लड़ लेते थे,
बिना संग मित्रों के,
इक पल भी नहीं रहते थे,
लेकिन अब वो लड़ाई याद आती हैं ।