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3 May 2020 · 1 min read

गऱीबी का गुनहगार

मुझसे क्यूँ नाराज़ हो, न मैं ये कोहराम लाया ।
छिना काम व मुँह का निवाला, फ़िर गुनहगार कहलाया ।

मिला नहीं अन्न का दाना, मैं भूख का सताया हूँ ।
मुझे गिला नहीं कोई, बच्चों की चीख़ से घबराया हूँ ।

हर तरफ़ चर्चा है मेरी, क्या मेरी वेबसी गुनाह है,
वैसे तो लूटती है अमीरी, ग़रीबों को यहाँ मिली सज़ा है ।

एक-एक पल किये इक्कट्ठे, रेत में फ़िर बिखर गए ।
सपने थे सोई आँखों के, सोते समय ही बिछड़ गए ।

है इतना अंतर यहाँ क्यूँ ,अमीरी और ग़रीबी में ।
“आघात” दिन गुज़ार ले, या जीना है सिर्फ़ फ़कीरी में ।

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 501 Views
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