** अगर बेटों को भी संस्कार देते …**
अगर बेटों को भी संस्कार देते ,
बेटियों की तरह ही विचार देते ।
समाज ना बनता हृदय विदारक ,
बेटों के बुरे कर्म पर जो मार देते ।।
कोसा हमेशा बेटियों को ही ,
भले ही बेटों से बेहतर होती ।
दुत्कारा हमेशा बेटियों को ही ,
गलती चाहे बेटों की होती ।।
बेटे के मोह में बेटी को मार दिया ,
खुद ही अपना भविष्य उजाड़ दिया ।
बेटी की जान की कीमत ना समझी ,
बेटों के लिए बेटी को वार दिया ।।
अब सोच रहे वृद्धाश्रम में बैठे ,
काश गर्भ में बेेटी मारी ना होती ।
अगर बेटी भी बेटों सी प्यारी होती ,
आज ये हालत हमारी ना होती ।।
मारी बेटी का बुढ़ापे में शौक मना रहे ,
जब बेटे जीते जी उन्हें मुर्दा बता रहे ।
समझ जाओ समय रहते दुनिया वालो ,
उस दिन से पहले कि खोकर पछता रहे ।।
खुदा न खास्ता ऐसा दिन ना आये कभी ,
बेटे तो हों पर बाँधने को राखी बेटियाँ ना रहें ।
कैसे पैदा करोगे बेटे ? कैसे बढ़ाओगे वंश ?
बनाने को बहु गर दुनियां में बेटियाँ ही ना रहें ।।