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9 Jun 2023 · 1 min read

गर्मी

बरसती आग है शोले गिरा रही गर्मी।
चढ़ा कर त्यौरियाँ आँखें दिखा रही गर्मी।

चढ़ा तेवर भला क्यों है नहीं कोई भी जाने,
सभी को हद से ज्यादा क्यों सता रही गर्मी।

पसीना तर-ब-तर पूरे बदन को कर रहा है,
जलन है गर्म सी नश्तर चुभा रही गर्मी।

हवाएँ बह रही है गर्म बौराई सी दिन भर,
बदन का ख़ून पानी सब जला रही गर्मी।

नहीं है चैन दिन में है नहीं सुकून शब में,
बिना कुछ भी किये सबको थका रही गर्मी।

तवे सी तप रही धरती बना सूरज अंगारा,
गरम अंगीठियों पर है पका रही गर्मी।

न तो पंखा न कूलर दे रहा है कोई राहत,
जज़ा किस जन्म का सबसे चुका रही गर्मी।

मना करता नहीं कोई बरसने से इसे क्यों,
सभी की जान आफ़त में है ला रही गर्मी।

लहर ऐसी कि सहना है नहीं आसान अब तो,
अकड़ किस बात की सबको दिखा रही गर्मी।

रिपुदमन झा ‘पिनाकी’
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

Language: Hindi
166 Views
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