गर्द अपनी ये ख़ुद से हटा आइने।
गर्द अपनी ये ख़ुद से हटा आइने।
मुझको मुझसे ज़रा सा मिला आइने।
क्यों है खामोश कबसे तुझे सब पता,
राज कुछ तो मुझे भी बता आइने।
मुद्दतों से न दीदार उसका हुआ,
कैसे उतरे ये मेरा नशा आइने?
रोज सजती संवरती तेरे सामने,
कुछ तो जादू तू अपना चला आइने।
टूटना तय तेरा ये गुरूर एक दिन,
एक कंकर जो टकराएगा आइने।
जाने कितने ही मुखड़े बने उम्र भर,
अंतरा गीत का चल बना आइने।
शौक़ पीने का बिल्कुल नहीं है मग़र,
आज नज़रों से साग़र पिला आइने।
इस तबाही से गर मैं अकेला बचा,
होना बाक़ी अभी जो लिखा आइने।
क्या रज़ा है “परिंदे” बता तो सही,
आसमाँ एक दिन चूमना आइने।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊