गर्ज ही गर्ज है, तर्ज ही तर्ज है l
गर्ज ही गर्ज है, तर्ज ही तर्ज है l
ना जाने कब कब का कर्ज कर्ज है ll
छुटकारा, छूट छूट जाए जाए l
ना जाने और क्या क्या क्यों दर्ज है ll
आग, दाग, दलदल, आंधी, लोटा है l
इश्क का, भारी मरा मर्ज मर्ज है ll
संसार जिसके, सहज हाथ हाथ है l
विषयी प्यास भी, करे करे अर्ज है ll
अरविन्द व्यास “प्यास”