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13 Mar 2019 · 1 min read

गरीब बेटी

अंतड़ियाँ जब
कुलबुलाती हैं
तब
बुझानी होती है
एक असह्य अगन
जो कई दिनों से
उधार चल रही
कई-कई उदरों की
जन्म दाता
हो जाते विवश
उसको असहाय छोड़ने
सूनी सपाट गली
का
भरा सन्नाटे से
नीरव मार्ग
या कभी
पथरीली सी
चुभते कंकर की
सड़क
और दोनों ओर
ऊलजलूल से
बेतरतीब उगे हुए
झाड़ झंखाड़ भी
धुपहली गर्मियों में
या कि तड़कते जाड़े में
यूँ समय / बेसमय
चौकन्नी हिरणी-सा
सहमा मन
कुंठित /आशंकित/भयभीत
गति बढ़ा देता है
उन असहाय कदमों की
जब करतीं पीछा
आक्रांत पदचापें
अनजाने
भेड़ियों की
जता ही देते
कंपित
पग उसके
पगतलियों को/उठते उर के लावे को
संभवतः यही न
कि प्रारब्ध
क्या है उसका
कहाँ है वह सुरक्षित
निरुत्तरित प्रश्न ?

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
220 Views
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