गरीबों की बस्तियाँ
गरिबों की बस्तियां जलती रही,
बनती नहीं कभी फिर उजड़ जाती है.
बना देते है बहु मंजिला इमारतें.
ठण्ड में काँपते हुए, बरसात मे.
दम तोड देते है,गगन चुंब कर .
हवाले तक देते नहीं अपने दर्द के.
पगार भी समय पर न पाकर अपनी,
ठेकेदार के पैर धोते घूमते रहते हैं .
कानूनी थे दस्तावेज उन सभी के.
बसा दिये गये, समय-२ कागजों पर