गरीबों की जिंदगी
कभी नमक,
कभी कपड़े,
दवा भी लेनी है,
त्योहार की तैयारी चल रही होती है,
बेटी की विदाई भी आ जाती है,
उन्हें उपहार मे साड़ी,
धोती और कुर्ता देने की परंपरा ही है ।
शरद ऋतु में भरे हुए गोदाम,
वसंत में खुलता है,
उससे निकाल अनाज पूरी टोकरियाँ
सिर पर लिए बाजार जाना ही है,
कुछ अधिक मोल पाने की लालच मे
मोलमोलाई करना मजबूरी है ।
चूल्हे पर आग,
अनियमित हुए कई महीने हो गए,
कभी लड़का भूखा, कभी बूढी माँ और बाप,
वह ऐसे ही सोता है,
मालिक ‘हमे अनाज दो,
गरीबों को बार–बार भीख मांगनी पड़ती है,
गरीबों की जिंदगी ऐसे ही चलती है ।
#दिनेश_यादव
काठमाण्डू (नेपाल)